पर्यावरण (Environment) में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ना चिंता का विषय है. इनमें ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gases) ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) को बढ़ाने में अहम योगदान देती है. हाल ही हुए दो अलग अध्ययनों में शोधकर्ताओं ने सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस मीथेन (Methane) के वैश्विक उत्सर्जन (Global emission) के बारे में नई और विस्तृत जानकारी हासिल की. इसमें अमेरिका (USA) जैसे देशों का जीवाश्म ईंधन प्रणालियों का बढ़ता उपयोग और विकासशील देशों में कृषि गतिविधियों का बड़ा योगदान है.
दो अलग अध्ययनों से सामने आई यह बात
अमेरिका में तेल और गैस के उत्खनन और दुनिया भर में कृषि उत्पादन की वजह से मीथेन जैसी ग्रीनहाउस का उत्सर्जन बढ़ रहा है. इस बात एक नहीं बल्कि दो अध्ययनों सामने आई है. यह एक बहुत बड़ा बदलाव है क्योंकि इससे पहले इस सदी की शुरुआत में मानवीय गतिविधियों के कारण जो मीथेन गैस का उत्सर्जन होता था वह सबसे ज्यादा कोयले की खदानों से होता था.
तेजी से बढ़ा मीथेन उत्सर्जनइस अध्ययन के मुताबिक साल 2007 से लेकर साल 2017 तक मीथेन उत्सर्जन बहुत बढ़ गया है. इसकी वजह जीवाश्म ईंधन प्रणालियों के साथ ही खाद्य पदार्थों का उत्पादन रही है. खाद्य पदार्थों के उत्पादन में दुनिया में लोगों का ज्यादा से ज्यादा मांस खाना कारण है.
अलग देशों का अलग योगदान
अमेरिका अब दुनिया में सबसे ज्यादा तेल और गैस का उत्पादन करने वाला देश बन गया है. वहीं दक्षिण एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में कृषि गतिविधियां बढ़ने से इन इलाकों में मीथेन का स्तर बढ़ता जा रहा है . चीन में भी कृषि और जीवाश्म उत्पादों का उपयोग बढ़ा है. नासा में पर्यावरण विज्ञानी और इस अध्ययन के सहलेखक बेन पॉल्टर का कहना है कि वायुमंडल में जीवाश्म ईंधन और कृषि दोनों की मीथेन उत्सर्जन बढ़ाने में समान भूमिका रही है.
दुनिया में बढ़ती कृषि गतिविधियों का भी मीथेन उत्सर्जन में अहम योगदान है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
ग्लोबल मीथेन बजट
ये दोनों अध्ययन अर्थ सिस्टम साइंस डेटा एंड एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं. दोनों अध्ययन ने मीथेन उत्सर्जन पर प्राकृतिक और मानवीय स्रोतों पर वैश्विक जानकारी अपडेट की है जिसे ग्लोबल मीथेन बजट कहा जाता है. पिछली बार इसे साल 2016 में अपडेट किया गया था जिसमें साल 2012 तक के उत्सर्जनों को शामिल किया गया था.
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मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड
मीथेन एक दिखाई न देने वाली गैस है जो कार्बनडाइऑक्साइड के मुकाबले ज्यादा उष्मा खींचती है. लेकिन यह वायुमंडल में कम समय तक रहती है. मीथेन का उत्सर्जन रोकने से हम जलवायु परिवर्तन के बुरे असर को रोक सकते हैं. साल 2000 से लेकर 2017 में मीथेन उत्सर्जन कम करने वाले इलाकों में केवल यूरोप ही शामिल है.
यूरोप में कम उत्सर्जन कैसे
बढ़ते हुए मीथेन उत्सर्जन पर लंदन यूनिवर्सिटी में रॉयल होलोवे के अर्थ साइंसिस्ट यूआन निस्बेट का कहना है कि यूरोप में ऐसा होने की वजह यह हो सकती है कि यहां मांस की खपत कम हो गई है और जमीन में कचरा भरने (landfills) के कानून में सख्ती हो गई है. जमीन में कचरा भरने के कारण कचरे के डिकम्पोजिशन के कारण उससे मीथेन गैस निकलती है. निस्बेट इन अध्ययनों में शामिल नहीं थे.
मांस सेवन और उसके उत्पादन संबंधी प्रक्रियाएं मीथेन उत्सर्जन बढ़ाते हैं
स्रोत जानना बहुत आवश्यक
इन दोनों शोधों में उत्सर्जन नापने के कऐई तरीके अपनाए जिसमें जमीन और सैटेलाइट अवलोकन और उत्पादन और खपत के चलन शामिल हैं. इनसे बड़े उत्सर्जन स्रोत पता लगाना तो आसान रह, लकिन हजारों छोटे-छोटे खेतों और करोड़ों मवेशियों का आंकलन कर पाना बहुत मुश्किल था. उत्सर्जन का स्रोत जानना उन पर नियंत्रण के लिए पहला आवश्यक कदम है.
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शोधकर्ताओं का मानना है कि दुनिया भर में बहुत से नीतिनिर्धारक और कंपनियां मीथेन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में बहुत से कदम उठा सकते है, लेकिन वे ऐसा कर नहीं रहे हैं.