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73 सालों में कई रूढियों से भी आजाद हुए हम, समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रदेश के विभिन्न समाजों ने बनाए कई नियम

संजयग्राम by संजयग्राम
15/08/2020
in समाचार
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  • Hindi News
  • Local
  • Chhattisgarh
  • Raipur
  • In 73 Years, We Have Been Liberated From Many Stereotypes, Different Societies Have Made Many Rules To Remove The Prevalent Evil In The Society

रायपुरएक घंटा पहले

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प्रतीकात्मक फोटो।

  • बनाए जो दे रहे हैं नई दिशा

देश 15 अगस्त 1947 को आजाद जरूर हुआ पर तब सभी समाज में काफी कुरीतियां थीं। अशिक्षा के कारण अंधविश्वास की जड़ें काफी गहरी हो चली थीं। बीते सात दशक से अधिक समय में इन सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में लोगों ने काफी योगदान दिया। न केवल अपनी बुराइयों को पहचाना और माना बल्कि उसका त्याग किया। इससे समाज में काफी बदलाव आया। जिस समाज ने समय के साथ अपनी धारणाएं बदलीं, आज उसकी स्थिति काफी बेहतर है। स्वतंत्रता के बाद हम जिन कुरीतियों से आजाद हुए। ऐसी ही कुछ कहानियां।

प्रदेश साहू संघ – विधवा मांओं को दिलाया पुत्र की शादी में मौर बांधने का अधिकार
विधवा के हाथ से कोई शुभ संस्कार न कराने जैसी कुरीति कई समाजों में आज भी प्रचलित है। प्रदेश साहू संघ ने 2016 में इस प्रतिबंध लगाने नियम पारित किया था। इसके तहत विधवा मांओं को बेटे की शादी में मौर बांधने का अधिकार दिया गया। समाज के प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन हिरवानी बताते हैं कि जिस घर में मां के अलावा कोई और न हो वहां शादी की रस्में संपन्न कराने में बहुत परेशानी आती है। लोग कई तरह के सवाल उठाते हैं। 4 साल लगातार अभियान चलाने के बाद आज हम विधवाओं को लेकर समाज की मानसिकता बदलने में कामयाब रहे हैं। पिछले 1 साल में 1 भी शिकायत नहीं आई है।

ब्राह्मण समाज – बैरंग जिंदगियों से मुक्ति मिली दांपत्य सूत्र में बंध रही विधवाएं
छत्तीसगढ़ में ब्राह्मण जाति की महिलाओं को आजादी के बाद सम्मानजनक स्थान मिला है। समाज के कई कुप्रथाओं से महिलाओं को आजादी मिली है। पति के मरने के बाद विधवाओं के सामने जीविकोपार्जन की समस्या उत्पन्न हो जाती थी। अब इनके जीवन स्तर पर सुधार आया है। छत्तीसगढ़ सरयूपारीण ब्राह्मण पुरानी धारणाओं को तोड़ने में अहम रोल अदा कर रहा है। वैवाहिक परिचय पत्रिका में कन्या सूची में विधवाओं का भी नाम शामिल किया जा रहा है। इसी कड़ी में विधवाओं के विवाह भी कराए जा रहे हैं। खंडोबा मंदिर में ब्राह्मण सभा रतनपुर और सरयूपारीण ब्राह्मण महासंघ प्रदेश स्तर पर चला रहा है।

कुर्मी समाज – 10-12 किमी में ही होती थी शादियां पर अब बहुएं दूर जगहों से आ रहीं
कुर्मी समाज ने स्वतंत्रता के बाद बहुत सारी कुरीतियों से आजादी पाई। समाज के लोग पहले बेटियों की शादी गांव के आसपास ही करते थे और बहुएं भी नजदीक से लाते थे। बेटी-बहुओं के गांवों का दायरा मायके ससुराल में 10-12 किलोमीटर का ही होता था। लेकिन अब बहुएं भी दूर से आ रही हैं। इन नियमों में परिवर्तन हो गया है। नजदीक और रिश्तेदारों में शादी करने का दुष्परिणाम सामने आया। समाज के लोगों को सिलकसेल की समस्या ने घेर लिया। छत्तीसगढ़ कुर्मी समाज के मीडिया प्रमुख भुवन वर्मा बताते हैं लोगों को पहले शिक्षा से जोड़ा गया। अब शादियों में दूरियों का बंधन खत्म हो चुका है। ​​​​​​

हरदीहा साहू समाज – शादी-छट्ठियों में अब फिजूलखर्ची नहीं, मृत्युभोज भी पूरी तरह बंद
हरदीहा साहू समाज ने भी शादी-छट्ठियों में होने वाली फिजूलखर्ची रोकने के साथ ही मृत्युभोज पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने में बड़ी कामयाबी पाई है। शादियों में होने वाले दिखावे को खत्म करने समाज में सामूहिक आदर्श विवाह अनिवार्य कर दिया गया है। पिछले 3 साल से समाज के सभी जोड़े इसी आयोजन में सात फेरे ले रहे हैं। अध्यक्ष नंदे साहू बताते हैं कि इससे जहां पार्टी-बारात पर होने वाली फिजूलखर्ची जहां रुक गई। वहीं, एक मंच पर शादी होने से अमीर-गरीब का भेद भी खत्म हुआ है। छट्ठी के कार्यक्रम भी अब सादगी से कराए जा रहे हैं। समाज में मृत्युभोज की प्रथा भी बहुत हद तक समाप्त हो चुकी है।

बोहरा समाज – सभी को रोजगार-छत दिलाई, हर घर एक वक्त का भोजन भेजते हैं
दाऊदी बोहरा समाज ने अपने आप में एक मिसाल कायम की है। समाज में लोगों को रोजगार और बेघरों को घर देने का बीड़ा उठाया और आज सभी के पास रोजगार और घर मौजूद हैं। इतना ही लोग एकजुट रहें और आपस में भाईचारा कायम रहे इसलिए सैयदना साहब ने 7 साल पहले एक अनूठी पहल की, जिसके तहत समाज के हर घर में एक वक्त का भोजन जमात की ओर से भेजा जाता है। शहर में समाज के 240 परिवार हैं। 52वें धर्मगुरु की पहल पर मोहम्मदी बाग में 72 फ्लैट बनवाएं। इनमें से 52 उनपरिवारों को दिए गए जिनके पास अपनी छत नहीं थी।

महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण समाज – अब महिलाएं भी पूजा पाठ करवाती हैं, अंतिम संस्कार में हो रहीं शामिल
बिलासपुर में रहने वाले महाराष्ट्रीयन समाज में पहले केवल पुरुष ही पंडिताई करते थे। महिलाओं को यह अधिकार नहीं था। आजादी के पहले अशिक्षा का माहौल था। कोई अधिक पढ़ा लिखा नहीं होता था। पिछले 50 साल में समाज ने काफी तरक्की की है। शिक्षा के साथ-साथ कुप्रथाएं भी बंद हुई हैं। महाराष्ट्र मंडल के सचिव गजानन फड़के के अनुसार अब महिलाएं भी पौरोहित्य करने लगी हैं। घरों के साथ ही मंदिरों में पूजा पाठ कराती हैं। समाज की पहल से अब महिलाएं अंतिम संस्कार में भी शामिल हो रहीं। दशगात्र की प्रथाएं समाज से कम होती जा रही हैं।

यादव समाज – कार्यक्रमों में कपड़े का लेन-देन बंद, इसकी जगह अब आिर्थक मदद
इसी तरह झेरिया यादव समाज ने शादी-छट्ठी जैसे कार्यक्रमों में कपड़ा देने-लेने को कुरीति बताते हुए 2 साल पहले इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। समाज के रायपुर जिलाध्यक्ष सुंदर लाल यादव का कहना है कि समाजों में ऐसी कई परंपराएं प्रचलित हैं जिनका न तो कोई धार्मिक महत्व है न सामाजिक। इनकी वजह से सिर्फ कार्यक्रम का खर्च बढ़ता है। कपड़ा लेना-देना भी ऐसी ही एक कुरीति है। 2 साल अभियान चलाकर हम इस पर प्रतिबंध लगाने में कामयाब रहे। लोगों से अपील की गई है कि वे कपड़ा या अनुपयोगी उपहार देने के बजाय नगद पैसे दें जो नवदंपति या नवजात के भविष्य के लिए उपयोगी साबित हो।

धोबी समाज – बहिष्कार के खिलाफ कानून बनाया, फिरकों के आपसी भेद भी खत्म किए
धोबी समाज संभवत: पहला ऐसा समाज है जिसने सामाजिक बहिष्कार पर प्रतिबंध लगाया है। इसके खिलाफ समाज में बकायदा कानून पारित किया गया है जिसके तहत समाज के किसी पदाधिकारी के खिलाफ बहिष्कार की शिकायत सही पाई जाती हे तो खुद प्रदेश संगठन उसके खिलाफ कोर्ट जाएगा। 2 साल में कुछ मामले भी सामने आए जिसमें प्रदेश कार्यकारिणी ने कार्रवाई करते हुए पदाधिकारियों को बर्खास्त किया। कानूनी कार्रवाई के लिए थाने तक भी गए। प्रदेश अध्यक्ष सूरज निर्मलकर बताते हैं कि सदियों पुरानी कुप्रथा को खत्म कर आज हम 7 फिरकों में रोटी-बेटी का रिश्ता जोड़ रहे हैं।

सिंधी समाज – शादी के न्यौता के समय उपहार देने की परंपरा बंद हुई
सिंधी समाज में भी आजादी के बाद कुप्रथाओं में परिवर्तन आया है। समाज ने शादियों में होने वाली अनावश्यक खर्चों में पाबंदी लगाई है। भारतीय सिंधु सभा महिला विंग की प्रदेशाध्यक्ष विनीता भावनानी ने बताया कि समाज में पगड़ी रस्म में अब नाश्ता नहीं देते। शादी में न्याैता देने के समय उपहार देने की परंपरा को भी बंद किया गया है। इसके साथ ही किसी परिवार में गमी होने पर प्रमुख महिला के गोल्ड को उतरवाकर धोया जाता था, आंखों में सूरमा डाला जाता था। यह भी अब बंद है। शराब पीने पर भी पाबंदी है।

सूर्यवंशी समाज – नशे पर प्रतिबंध, नहीं काटते हैं पेड़ फेरे से पहले लगाते हैं पौधों का जोड़ा
बिलासपुर जिले में आजादी के बाद से सूर्यवंशी समाज के लोगों ने कई कुरीतियों से आजादी पाई है। समाज में शराब व अन्य तरह के नशे पर प्रतिबंध है। कोई भी नशे में पाया जाता है तो उसे सामाजिक दंड मिलता है। समाज ने बाल-विवाह पर भी रोक लगा रखी है। पेड़ काटने पर सामाजिक दंड का प्रावधान कर दिया है वहीं नव जोड़े को सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद देने के साथ ही समाज पांच पौधे दान में देता है। मोपका के साखन दर्वे के अनुसार समाज के सदस्यों को जैसे ही किसी की शादी का पता चलता है, वे विवाह मंडप पर पहुंच जाते हैं। वे वर-वधु को पांच फलदार पौधे देकर उसे लगाने की प्रेरित करते हैं।

इनपुट- रायपुर से गौरव शर्मा, बिलासपुर से चंद्रकुमार दुबे, विनोट कुमार पटेल, अब्दुल रिजवान

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