एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के बहुत करीब चीन अपने सैन्य बेस स्थापित कर चुका है. यह वाकई चौंकाने वाली बात भी है और चिंताजनक भी कि चीन के इन सैन्य ठिकानों के बारे में कई जानकारियां या तो राज़ बनी हुई हैं या फिर चीन ‘दिखाओ कुछ और करो कुछ’ की नीति अपनाकर गुपचुप ढंग से अपने सैन्य अड्डे बना रहा है. जानिए दुनिया में चीन कहां अपनी सैन्य मौजूदगी रखता है और कहां कायम करने के लिए उतावला है.
चीन के चार अहम सैन्य बेस?
अर्जेंटीना के पैटागोनिया इलाके में चीन का यह बेस काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि घोषित तौर पर यह स्पेस और इंटेलिजेंस गतिविधियों के लिए है लेकिन यहां चीनी सेना तैनात रहती है और यहां की गतिविधियां तकरीबन रहस्य हैं. हॉर्न ऑफ अफ्रीका में अहम बेस जिबूटी में है. चीन घोषित तौर पर, म्यांमार के ग्रेट कोको आइलैंड में नेवी बेस रखता है तो ताजिकिस्तान के गोर्नो बादख्शां इलाके में मिलिट्री बेस. पहले दो के बारे में विस्तार से समझना चाहिए.ये भी पढ़ें :- कैसे दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना बना चीन? क्या है समुद्र में अब उसकी ताकत?
दक्षिण अमेरिका में चीन की सैन्य मौजूदगी
अर्जेंटीना में ग्लेशियरों, पहाड़ों और झीलों के लिए मशहूर इलाके पैटागोनिया के न्यूकेन में चीन का बेस इसलिए अमेरिका और कुछ अन्य शक्तियों के लिए चिंता का विषय रहा है क्योंकि यह है तो चीन के लिए स्पेस स्टेशन की सुविधा, लेकिन इसे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी संचालित करती है. यहां इस स्टेशन के लिए चीन और अर्जेंटीना के बीच जो समझौता हुआ है, उसके अनुसार चीन को 50 सालों तक के लिए टैक्स छूट दी गई है.
चीन की सैन्य गतिविधियां अमेरिका के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं.
अमेरिका इस स्टेशन के ज़रिये जासूसी करने और सैन्य मौजूदगी बढ़ाने के आरोप चीन पर लगा चुका है. विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इस तरह के समझौते से अर्जेंटीना ने अपनी ही ज़मीन पर संप्रभुता खोने वाला काम किया है. कुल मिलाकर, यह बेस चीनी ताकत के विस्तार के नज़रिये से काफी अहम है.
जिबूटी में चीनी सैन्य बेस
हॉर्न ऑफ अफ्रीका में उपस्थिति मज़बूत करने के नज़रिये से जिबूटी में चीन का मिलिट्री बेस इसलिए अहम है क्योंकि यह समुद्री व्यापार के रूट के लिहाज़ से काफी अहम जगह है. एक रिपोर्ट के अनुसार जिबूटी सरकार पर चीन का डेढ़ अरब डॉलर का कर्ज है, जिसे चुकाने में राहत देने के एवज़ चीन ने यहां अपना सैन्य बेस बना लिया है. यह भी अमेरिकी सैन्य नज़रिये से एक गढ़ रहा है.
हिन्द महासागर में चीन और ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’
भारत को चारों तरफ से घेरने के लिए चीन हर चाल चलने के लिए मुस्तैद रहा है क्योंकि एशिया में चीन का मुकाबला अगर कोई कर सकता है तो सिर्फ भारत. मालदीव में चीन के मिलिट्री बेस को ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ की थ्योरी से समझा जाता है. मैनलैंड चीन से लेकर मध्य पूर्व तक हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सैन्य नेटवर्क को फैलाना चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति है.
हालांकि चीन ऐसी किसी रणनीति से इनकार करता है, लेकिन म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान और जिबूटी तक चीनी सेना की उपस्थिति से इस थ्योरी की पुष्टि हो ही जाती है. म्यांमार के क्यॉक्प्यू पोर्ट पर चीन का नियंत्रण है. अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पास कोको आइलैंड भी चीन का ठिकाना है. श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट चीनी कंपनी को 99 साल की लीज़ पर हासिल है और भारत मानता है कि यहां चीन सबमरीन डॉक बना सकता है.
इसी तरह, पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर एक तरह से चीन का ही अधिकार है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह भारत के तीन तरफ अपने सैन्य पोस्ट बना चुके चीन के लिए मालदीव में सैन्य बेस काफी अहम है. अगर यहां सैन्य बेस तैयार हो गया तो चीन भारत को हिंद महासागर में तीनों तरफ से पूरी तरह घेरने में कामयाब होगा.
भारत को हिंद महासागर में घेरने की फिराक में है चीन.
और कहां बेस की फिराक में है चीन?
स्वतंत्र थिंक टैंक मानते हैं कि एशिया, अफ्रीका और यूरोप में चीन का जो महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ फैला हुआ है, उन तमाम भूभागों में किसी न किसी तरह चीन अपनी मज़बूत पकड़ बनाकर रखना चाहता है ताकि इस बेहद खास प्रोजेक्ट पर वह हमेशा नज़र और सुरक्षा रख सके. इसके लिए चीन हर संभव ढंग से अपने सैन्य बेस तैयार करने की जुगत में लगा हुआ है.
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दूसरी ओर, अमेरिका और भारत के खिलाफ अपनी पकड़ बेहतर और मज़बूत करने की नीति को भी चीन कई तरह के सैन्य बेसों का कारण बना रहा है. तीसरे, अपने व्यापारिक वर्चस्व को भुनाकर पिछड़े देशों के बीच रणनीतिक तौर से अहम लोकेशनों को चीन अपना गढ़ बनाने की फिराक में है. जैसे अफ्रीका के 51 देशों में कई तरह के विकाय कार्यों, लोक निर्माण आदि प्रोजेक्टों में चीन का 94 अरब डॉलर का निवेश है.
साल 2017 में जब चीन ने वनुआतु द्वीप को 14 सैन्य वाहन दान किए तबसे यहां चीन के सैन्य बेस बनने संबंधी खबरें आईं. यहां ऑस्ट्रेलिया पर दबाव बनाने के लिए चीन रणनीतिक तौर पर निवेश और मिलिट्री बेस संबंधी कवायद कर रहा है. इसके अलावा, चीन मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में दबदबे के लिए सैन्य बेसों के लिए उतावला दिख रहा है.
अमेरिकी रक्षा विभाग की पिछली सालाना रिपोर्ट के मुताबिक डेनमार्क में चीन की दिलचस्पी भी शक के दायरे में थी. ग्रीनलैंड में रिसर्च स्टेशन व उपग्रह ग्राउंड स्टेशन बनाने समेत चीन ने एयरपोर्ट नवीनीकरण और माइनिंग के लिए प्रस्ताव रखे थे. साथ ही, पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया कि आर्कटिक क्षेत्र में भी चीन की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं. यहां चीन सबमरीन तैनाती समेत मिलिट्री बेस की संभावना खोजने में जुटा है.