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- Rajasthani Language … 17 Years Ago, The State Government Took A Decision To Give Unanimous Recognition, But The Central Government Has Not Yet Approved
बीकानेर3 घंटे पहले
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आज ही के दिन 2003 में राज्य में कांग्रेस सरकार ने 200 विधायकों का सर्वसम्मति से राजस्थानी भाषा को मान्यता मिली
- राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए 25 अगस्त 2003 में ही राजस्थान सरकार ने केन्द्र सरकार को भेज दिया था प्रस्ताव
- नई शिक्षा नीति में बच्चों को प्राइमरी शिक्षा मातृभाषा में देने की बात कही गई है लेकिन प्रदेश में यह संभव ही नहीं
आज 25 अगस्त है। 17 साल पहले आज ही के दिन 2003 में राज्य में कांग्रेस सरकार ने 200 विधायकों का सर्वसम्मति से राजस्थानी भाषा को मान्यता देते हुए आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार को भेज दिया लेकिन केन्द्र सरकार इस पर आज तक कोई निर्णय नहीं ले सकी।
25 अगस्त की पूर्व संध्या पर राजस्थानी मोट्यार परिषद के युवाओं ने एक बार फिर संकल्प दोहराया है कि वे राजस्थानी को राजभाषा बनाकर ही चेन लेंगे। राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए लड़ने वाले युवाओं में इस बात की टीस है कि 10 करोड़ लोगों की मातृभाषा राजस्थानी को मान्यता देने में केन्द्र सरकार क्यों रुचि नहीं ले रही, जबकि यह भाषा की मान्यता की बात संसद में भी सैकड़ों बार उठ चुकी है।
आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं होने के बावजूद केन्द्रीय साहित्य अकादेमी की ओर से हर वर्ष एक लाख रुपए का राजस्थानी पुरस्कार भी प्रदान किया जा रहा है और तो और राजस्थानी का शब्दकोष विश्व में सबसे बड़ा शब्दकोष है। देश के कई विश्वविद्यालयों की ओर से राजस्थानी में बीए, एमए और पीचईडी की उपाधि प्रदान की जा रही है। भाषाई दृष्टि से हर मानकों पर खरी उतरी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिख चुके हैं।
1944 से चल रही राजस्थानी की मान्यता की मांग
राजस्थानी भाषा की मान्यता की मांग आज से नहीं आजादी से पहले से ही उठ रही है। देश को आजादी भले ही 1947 में मिली हो लेकिन राजस्थानी भाषा को मान्यता की मांग पहले से ही उठने लगी। सबसे पहले 1944 में दिनाजपुर सम्मेलन में राजस्थानी भाषा काे मान्यता देने की आवाज उठी जाे अब तक लगातार चल रही है।
नई शिक्षा नीति में भी पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाने की बात लेकिन बिना मान्यता के कैसे होगा संभव
नई शिक्षा नीति में बच्चों को प्राइमरी शिक्षा मातृभाषा में देने की बात कही गई है लेकिन प्रदेश में यह संभव ही नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारे प्रदेश की मातृभाषा राजस्थानी तो है लेकिन केन्द्र सरकार ने अभी तक इसे मान्यता नहीं दी है। राजस्थानी मोट्यार परिषद, मायड़ भाषा छात्र मोर्चा और अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने कहा, जब तक सरकार राजस्थानी भाषा की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जाता है जब तक स्कूलों में बच्चों को कैसे प्रारंभिक शिक्षा दे सकते हैं।
50 माैजूदा विधायकाें-सांसदाें के अलावा इतने ही पूर्व विधायकों और सांसदों ने सीएम और पीएम को लिखे पत्र
पिछले एक साल में 50 मौजूदा विधायकों और सांसदों के अलावा इतने ही पूर्व विधायकों और सांसदों ने राजस्थानी की मान्यता के लिए राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री को पत्र लिख चुके हैं। इनके अलावा एक दर्जन से अधिक सामाजिक संस्थाओं ने भी पत्र लिखा है। राजस्थानी की मान्यता के लिए युवाओं ने अपने खून पत्र लिख चुके हैं। और तो और नोखा के विधायक बिहारीलाल बिश्नोई ने तो भाषा की मान्यता के लिए विधानसभा में प्रदर्शन तक किया था।
राजस्थानी मोट्यार परिषद के गौरीशंकर प्रजापत, डॉ हरिराम बिश्नोई, नमामीशंकर आचार्य, सरजीतसिंह, सुमन शेखावत आदि ने एक बार फिर संकल्प लिया है कि जब तक राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलेगी वे चेन से नहीं बैठेंगे
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