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- Atrocities Were Such That Seeking Freedom Was Also A Crime; Thousands Of Patriots Gathered In Raisinghnagar, Firing Police On Hoisting The Tricolor … Birbal Became A Martyr
श्रीगंगानगर21 घंटे पहले
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- पहली बार भास्कर में पढ़िए श्रीगंगानगर में आजादी के लिए 30 जून 1946 को हुए संघर्ष की पूरी कहानी
73 साल पहले देश को आजादी मिली थी। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ब्रिटिश शासन और देसी रियासतों से आजाद होने के लिए चले स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीगंगानगर (तत्कालीन बीकानेर रियासत) के लोगों ने भी योगदान दिया था।
स्वतंत्रता आंदोलन को रोकने के लिए अंग्रेजों ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट लागू कर प्रमुख लोगों की गतिविधियों पर रोक लगा दी, साथ ही आजादी की मांग करना गुनाह तक घोषित कर दिया। बावजूद इसके सब बंदिशों को तोड़ते हुए रायसिंहनगर में 30 जून 1946 काे हजारों लोग इकट्ठा हो गए। हाथों में तिरंगा लिए इन लोगों की एक ही मांग थी अंग्रेजों के शासन से आजादी।
तब लोगों की समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रजा परिषद गठित की गई थी। इसी प्रजा परिषद के बैनर तले रायसिंहनगर में यह स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया। इसे रोकने के लिए पुलिस ने गोलीबारी तक की, जिसमें यहां के युवा बीरबलसिंह जीनगर शहीद हो गए। तब जमींदारा एसोसिएशन ने भी नहरी क्षेत्र में किसानों की समस्याएं उठाने के साथ स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत की थी।
आज संजयग्राम में पढ़िए श्रीगंगानगर के स्वतंत्रता संग्राम की पूरी कहानी… इस संग्राम के सभी तथ्य आजादी के आंदाेलन से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेजों से जुटाए गए हैं। आप भी पढ़िए श्रीगंगानगर में लड़े गए स्वतंत्रता संग्राम का पूरा किस्सा…
शहीद बीरबलराम
पब्लिक सेफ्टी एक्ट में 7 नेताओं पर पाबंदी लगाई : बीकानेर स्टेट में किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए 1938-39 में गुरदयाल सिंह संधू की अगुवाई में जमींदारा एसोसिएशन बनी। नहरी खेती करने वाले किसानों के इस संगठन ने भी स्वतंत्रता की आवाज उठाई तो पाबंदियों का सिलसिला शुरू हो गया।
बीकानेर स्टेट के पुलिस महानिदेशक ने 21 मई 1940 को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत स्वतंत्रता की आवाज उठाने वाले सात नेताओं-गुरदयाल सिंह संधू, गुरनाम सिंह, लाल सिंह, मेला राम, हरी सिंह दुखिया, मस्तान सिंह और काला सिंह को निरुद्ध करने के आदेश जारी किए।
इन नेताओं को अपने अावास क्षेत्र की 2 मील परिधि में ही रहने और आईजी की अनुमति के बगैर बाहर नहीं जाने को पाबंद किया गया। बीकानेर रियासत, अंग्रेज सरकार के खिलाफ बोलने और यहां तक कि मीडिया से बात करने और इंटरव्यू देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ये आदेश क्रमांक 1346/641 एस.बी. आईजी की ओर से 21 मई 1940 को जारी किया गया।
चित्रण के साथ देखिए आज स्वतंत्रता संग्राम की कहानी; इसके बाद श्रीगंगानगर में तेज हुआ था आंदोलन
1. अंग्रेजों और देसी रियासतों से दासता से मुक्ति पर बुलाई रायसिंहनग में सभा
30 जून 1946 को प्रजामंडल की रायसिंहनगर में सभा हुई। इसमें अंग्रेजों और देसी रियासतों की दासता से मुक्ति के लिए चर्चा हुई। प्रजा मंडल को इस शर्त पर सभा करने की अनुमति मिली कि सभा में पब्लिक सेफ्टी एक्ट का विरोध नहीं किया जाएगा, साथ ही इसमें तिरंगा नहीं लहराया जाएगा। तब तिरंगा आजादी के अांदोलन का प्रतीक होता था। उस सभा में स्वतंत्रता सेनानियों की गिरफ्तारियों व अंग्रेजों के शासन का जमकर विरोध किया गया।
2. आक्रोशित भीड़ ने तिरंगा हाथ में लेकर निकाला जुलूस, पुलिस ने रोका
सभा में आक्रोशित भीड़ ने जुलूस निकाल कर शासन तक अपना विरोध पहुंचाने का फैसला किया। तब भीड़ के आगे 22 वर्षीय युवक बीरबल सिंह जोश के साथ तिरंगा लहराते हुए चल रहे थे। चूंकि तिरंगा फहराने की मनाही थी तो पुलिस ने नियमों की दुहाई देते हुए तिरंगे को नीचे करने की चेतावनी दी। लेकिन बीरबलसिंह ने देशभक्ति के चलते ऐसा करने से मना कर दिया गया। वे अड़ गए कि चाहे सिर चला जाए, पर उनके हाथ में पकड़ा तिरंगा नहीं झुकेगा।
3. तिरंगा नीचे नहीं किया तो पुलिस का लाठीचार्ज और बीरबल को 3 गोलियां लगी
बार-बार चेतावनी के बाद भी बीरबल सिंह ने तिरंगा नीचे नहीं किया तो पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज किया और गोलियां चला दी। बीरबल पीछे नहीं हटे, उन्हें तीन गोलियां लगीं और वे शहीद हो गए। रायसिंहनगर की सभा का नेतृत्व प्रजा मंडल के अध्यक्ष रघुवर दयाल, सचिव रामचंद्र खजांची, पूर्ण चंद कच्छावा, गुरदयाल सिंह संधू, गोविंद राम जोड़ा, कुंदन लाल शर्मा, ईश्वर सिंह, सरदार मोहन सिंह ने किया था।
मार्च 1946 में सरकारी गेस्ट हाउस में बैठक, इसे भी माना सरकार के खिलाफ विद्रोह
1946 में किसानों ने सरकारी गेस्ट हाउस पदमपुर में बैठक की तो इसकी खुफिया रिपोर्ट राजस्व मंत्री के कार्यालय काे भेजी गई। खुफिया रिपोर्ट में सरकारी अहाते में बिना अनुमति जलसा करने को अति गंभीर माना गया। अधीनस्थ अधिकारियों व कर्मचारियों को पत्र नंबर 813/1114 सी. दिनांक 2 अप्रैल 1946 भेजकर चेतावनी दी गई कि भविष्य में किसी सरकारी परिसर में बगैर अनुमति सभा नहीं होने दी जाएगी।
राज्य अभिलेखागार से श्रीगंगानगर में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रिकॉर्ड का अध्ययन करने वाले स्वतंत्रता सेनानी गुरदयाल सिंह के पाैत्र गुरबलपाल सिंह संधू के अनुसार तब खुफिया रिपोर्ट में सरकारी गेस्ट हाउस में बैठक को सरकार के खिलाफ विद्रोह करार दिया गया था।
जेल से खून की चिट्ठियां लिखी, लोगों को आंदोलन में शामिल होने का न्यौता भेजा
1946 में आबियाना टैक्स का विरोध कर रहे गुरदयाल सिंह संधू, चौ. जीवनराम दीनगढ़, नत्थूराम योगी, रामलाल बेनीवाल, हीरालाल बीदासर, वाघचंद मुदगल, रामचंद जैन नोहर, कुंभाराम आर्य सहित अन्य नेताआें काे गिरफ्तार किया। तब इन्हें बीकानेर जेल में विशेष राजनीतिक कैदी का दर्जा देकर जेल के वार्ड नंबर 22 में रखा गया।
तब माेहर सिंह श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और चूरू के दो दर्जन से ज्यादा मौजिज व्यक्तियों को खून से चिट्ठियां लिखकर आंदोलन करने काे कहा गया। तब सबसे पहले 16 मार्च 1947 को राजगढ़, फिर श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ क्षेत्र में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए। फिर सभी गिरफ्तार नेताओं की रिहाई करनी पड़ी।
खुफिया एजेंसियों को भ्रम में रखने के लिए गुप्त बैठकों के बाकायदा रखते थे कोड वर्ड
गंगनहर समिति के पूर्व अध्यक्ष गुरबलपाल सिंह संधू के अनुसार 1940 में प्रमुख सक्रिय नेताओं को जब पब्लिक सेफ्टी एक्ट में पाबंद किया गया तो गुप्त बैठकों का दौर शुरू हुआ। उनके दादा गुरदयाल सिंह संधू बताते थे कि तब गांव 19 एफएफ में बैठक करनी थी। इस स्थान काे कोडवर्ड में इलाहाबाद नाम दिया गया।
खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक लगी तो वे इलाहाबाद क्षेत्र में भटकती रही। तब 19 एफएफ में बैठक कर महात्मा गांधी के सत्याग्रह पर चर्चा की गई और निर्णय लिया गया कि श्रीगंगानगर आजादी के इस आंदोलन में सक्रिय भूिमका निभाएगा और वे किसी भी जुल्म के आगे नहीं रुकेंगे और न ही झुकेंगे।
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