भारत की आजादी के यज्ञ में हजारों वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 की क्रांति का आगाज करने वाले मंगल पांडे (Mangal Pandey) का नाम देश के वीर ऐसे ही सपूतों में सबसे ऊपर और सबसे पहले आता है. वह कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही नंबर 1446 थे. उनकी भड़काई क्रांति की आग से ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) हिल गई थी. उन्हें बैरकपुर में 29 मार्च की शाम अंग्रेज अफसरों पर गोली चलाने और तलवार से हमला करने के साथ ही साथी सैनिकों को भड़काने के आरोप में मौत की सजा (Capital Punishment) सुनाई गई. उनकी फांसी का दिन 18 अप्रैल, 1857 तय किया गया. हालांकि, बैरकपुर के सभी जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इनकार कर दिया.
भारत की आजादी के यज्ञ में हजारों वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी
कलकत्ता से बुलाने पड़े थे जल्लाद, 10 दिन पहले ही दी फांसीबैरकपुर में कोई जल्लाद नहीं मिलने पर ब्रिटिश अधिकारियों ने कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाए. यह समाचार मिलते ही कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष भड़क उठा. इसे देखते हुए उन्हें 8 अप्रैल 1857 की सुबह ही फांसी पर लटका दिया गया. इतिहासकार किम ए. वैगनर की किताब ‘द ग्रेट फियर ऑफ 1857 – रयूमर्स, कॉन्सपिरेसीज एंड मेकिंग ऑफ द इंडियन अपराइजिंग’ में बैरकपुर में अंग्रेज अफसरों पर हमले से लेकर मंगल पांडे की फांसी तक के घटनाक्रम के बारे में सिलसिलेवार तरीके से जिक्र किया गया है.
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ब्रिटिश इतिहासकार रोजी लिलवेलन जोंस की किताब ‘द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया, 1857-58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश में बताया गया है कि 29 मार्च की शाम मंगल पांडे यूरोपीय सैनिकों के बैरकपुर पहुंचने को लेकर बेचैन थे. उन्हें लगा कि वे भारतीय सैनिकों को मारने के लिए आ रहे हैं. इसके बाद उन्होंने अपने साथी सैनिकों को उकसाया और ब्रिटिश अफसरों पर हमला किया.

उन्होंने अपने साथी सैनिकों के साथ मिलकर ब्रिटिश अफसरों पर हमला बोल दिया
मंगल पांडे ने आखिरी गोली खुद पर ही चलाई थी, हुए थे जख्मी
वैगनर लिखते हैं कि मंगल पांडे ने दो अंग्रेज अफसरों पर गोली चलाई, लेकिन दोनों बार उनका निशाना चूके गया. इसके बाद उन्होंने अपनी तलवार से हमला कर अंग्रेज अफसर को घायल कर दिया. इसके बाद उनके एक साथी ने उन्हें पकड़ लिया. इसके बाद उनसे छूटकर भागे मंगल पांडे ने अपनी बंदूक को जमीन पर रखकर पैर के अंगूठे से अपने ही ऊपर गोली चला दी. इसमें वह जख्मी हो गए और उनके कपड़े जल गए.
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इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल किया गया और फांसी की सजा दी गई. मंगल पांडे ने ही ‘मारो फिरंगी को’ नारा दिया था. मंगल पांडे को आजादी का सबसे पहला क्रांतिकारी माना जाता है. जोंस लिखती हैं कि घटना के चश्मदीद गवाह हवलदार शेख पल्टू के मुताबिक सार्जेंट मेजर जेम्स ह्वीसन हंगामे की आवाज सुनकर पैदल ही बाहर निकले. इस पर मंगल पांडे ने ह्वीसन पर गोली चलाई, लेकिन ये गोली ह्वीसन को नहीं लगी.

बगावत के निशान मिटाने के लिए ब्रिटिश अफसरों ने 34वीं इंफैंट्री को ही भंग कर दिया
उनके साथी शेख पल्टू ने अंग्रेज अफसरों को बचाया
मंगल पांडे ने इसके बाद घोड़े पर सवार होकर अपनी तरफ आ रहे लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग पर गोली चलाई. इस बार भी उनका निशाना चूके गया. फिर उन्होंने बेंपदे को अपनी तलवार के वार से जख्मी कर दिया. इस दौरान शेख पल्टू ने उन्हें रोका. उसने मंगल पांडे की टुकड़ी के प्रमुख को उन्हें रोकने में मदद करने को कहा. इस पर ईश्वरी प्रसाद ने शेख पल्टू पर ही बंदूक तान दी और मंगल पांडे को नहीं भागने देने पर उसे ही गोली मारने की चेतावनी दी. मंगल पांडे के बाद 21 अप्रैल को ईश्वरी प्रसाद को भी फांसी पर चढ़ा दिया गया. इस बगावत के निशान मिटाने के लिए ब्रिटिश अफसरों ने 34वीं इंफैंट्री को ही भंग कर दिया.
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बेरहामपुर में चर्बी लगी गोली चलाने से किया था मना
इस पूरे घटनाक्रम से पहले 26 फरवरी, 1857 को सुअर और गाय की चर्बी वाले कारतूस पहली बार इस्तेमाल करने का समय आया तो बेरहामपुर की 19वीं नेटिव इंफैंट्री में तैनात मंगल पांडे के समझाने पर कई सैनिकों ने ऐसा करने से इनकार दिया. दरअसल, उस समय कारतूसों को इस्तेमाल से पहले मुंह से खींचना पडता था. इसके बाद सभी सैनिकों को बैरकपुर लाकर बेइज्जत किया गया था. क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था. उस दिन की याद में भारत सरकार ने बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान बनवाया. साथ ही उनके नाम और फोटो वाली स्टैंप को दिल्ली के कलाकार सीआर पाकराशी से तैयार करवाकर 5 अक्टूबर, 1984 को जारी किया.
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