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- Two Characters From The Same City Face To Face In State Politics, Between Veteran Gehlot And Energetic Shekhawat
जोधपुर6 घंटे पहले
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गजेंद्र सिंह शेखावत और गहलोत के बीच पहला सीधा मुकाबला गत लोकसभा चुनाव के दौरान जोधपुर में देखने को मिला। इसमें शेखावत की जीत हुई थी।
- दोनों ने राजनीति का ककहरा विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष पद के चुनाव में हार के साथ सीखा
- राजस्थान की मौजूदा सियासी उठापटक में कौन-किसे पटकनी देगा यह तो समय ही तय करेगा
प्रदेश की राजनीति में इन दिनों आए भूचाल में जोधपुर के दो किरदार पूरी तरह से छाए हुए हैं, लेकिन एक-दूसरे के धुर विरोधी के रूप में। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में उभरते केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत। एक और जहां 52 साल के शेखावत ऊर्जा से लबरेज हैं। वहीं उनसे 17 साल बड़े 69 साल के गहलोत लंबे अनुभव के दम पर अपने आप में एक राजनीतिक शख्सियत बन चुके हैं।
इन दोनों के बीच चल रही राजनीतिक जंग चरम पर पहुंच चुकी है। मौजूदा सियासी उठापटक में कौन-किसे पटकनी देगा यह तो समय ही तय करेगा, लेकिन फिलहाल दोनों के बीच शब्दभेदी बाण खुलकर चल रहे हैं। पहली बार सांसद बने शेखावत को गहलोत ने कभी कोई खास तव्वजो नहीं की, लेकिन लोकसभा चुनाव में गहलोत के बेटे वैभव को पराजित कर विजयी रहे शेखावत का कद बढ़ गया।
वसुंधरा के विरोधी माने जाते हैं शेखावत
वहीं, वसुंधरा राजे के विरोध के कारण प्रदेशाध्यक्ष पद पर ताजपोशी से वंचित रहे शेखावत ने हिम्मत नहीं हारी और प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ा दी। लोकसभा चुनाव के पश्चात शेखावत ने गहलोत पर हमले बढ़ा दिए। प्रदेश में शेखावत के अलावा अन्य किसी भाजपा नेता ने इतने हमले नहीं बोले। बदले में मौका पड़ने पर गहलोत शेखावत पर फब्तियां कसने से नहीं चूकते।
एक बार फिर आमने-सामने
लोकसभा चुनाव के बाद अब प्रदेश में कांग्रेस सरकार पर मंडराए संकट के बादलों ने एक बार फिर शेखावत व गहलोत को आमने-सामने ला खड़ा किया। शेखावत को महसूस हुआ कि सचिन पायलट के माध्यम से वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो सकते हैं। इसके बाद वे खुलकर सक्रिय हो गए और गहलोत पर लगातार हमले बोले। सरकार बचाने में व्यस्त गहलोत ने इनका एक बार भी प्रतिकार नहीं किया।
गहलोत पर हमलावर रुख अपनाने वाले शेखावत ऑडियो क्लिप में नाम सामने आने के बाद फिलहाल बैकफुट पर है और गहलोत फ्रंटफुट पर। एक ही शहर के इन दो नेताओं के बीच यह राजनीतिक जंग फिलहाल जारी रहेगी।
अनुभवी और ऊर्जावान के बीच मुकाबला
गहलोत का शुमार देश के चुनिंदा नेताओं में किया जाता है। तीसरी बार मुख्यमंत्री बने गहलोत के पास लंबे राजनीतिक अनुभव की विरासत है। वे तीन बार प्रदेशाध्यक्ष, तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के महासचिव, तीन बार केन्द्र में मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा, पांच बार सांसद और पांच बार ही विधायक चुने गए हैं। वहीं छात्र राजनीति से निकल कर गजेन्द्र सिंह शेखावत संघ के ही एक संगठन सीमा जनकल्याण परिषद व स्वदेशी जागरण मंच से जुड़ गए। इनके माध्यम से वे भाजपा में कदम दर कदम आगे बढ़े।
एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में संघ पृष्ठभूमि का होने के कारण वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें जोधपुर से प्रत्याशी बनाया। जीतने के कुछ समय बाद वे केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री बनाए गए।
पहली बाजी रही थी शेखावत के नाम
शेखावत और गहलोत के बीच पहला सीधा मुकाबला गत लोकसभा चुनाव के दौरान जोधपुर में देखने को मिला। शेखावत के सामने गहलोत ने अपने बेटे वैभव को चुनाव मैदान में उतारा। इसके बाद गहलोत ने जी जान लगा वैभव को विजयी बनाने के लिए दिन-रात एक कर दिए। लेकिन देशव्यापी मोदी लहर में वैभव भी टिक नहीं पाए। और पहला मुकाबला शेखावत के नाम रहा।
दोनों की एक जैसी राजनीतिक शुरुआत
खासियत की बात यह है कि दोनों ने राजनीति का ककहरा एक ही संस्थान जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष पद के चुनाव में हार के साथ सीखा। साल 1973-74 में तब के जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष पद में खड़े हो गहलोत ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। तब उन्हें वर्तमान में अधिवक्ता और कांग्रेस कार्यकर्ता पन्नेसिंह रातड़ी ने पटकनी दी थी।
वहीं शेखावत को 90 के दशक की शुरुआत में वर्तमान में गहलोत सरकार में राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने मात दे दी। इसके अगले वर्ष शेखावत ने एक बार फिर छात्र संघ का चुनाव लड़ा और अध्यक्ष चुने गए।
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