भारत और चीन (India-China) के बीच मैराथन वार्ताओं के बाद कहा जा रहा है कि तनाव बना हुआ है और स्थिति और गंभीर हो सकती है. इसी बीच, ताज़ा खबरें ये कह रही हैं कि भारत में चीनी राखियों (Chinese Rakhi) के साथ ही अन्य चीज़ों की खरीदारी के वक्त भी लोग चीन के बॉयकॉट का खयाल रख रहे हैं. वहीं, हाल में, New York में भारतीय समुदाय के साथ ही, ताईवानियों और तिब्बतियों ने भी चीन के बॉयकॉट की मांग को लेकर प्रदर्शन किए.
Corona Virus संक्रमण चूंकि चीन से शुरू हुआ इसलिए भी चीन के खिलाफ एक लहर दुनिया के कई हिस्सों में दौड़ रही है. इस पूरे परिदृश्य में चीन के खिलाफ एक माहौल है और ऐसा नहीं है कि यह पहली बार है. पहले भी चीन के खिलाफ देशों ने इस तरह के बॉयकॉट का रास्ता इख्तियार करने से परहेज़ नहीं किया है. ताज़ा और कुछ ही पहले तक होते रहे ‘बॉयकॉट चाइना’ के उदाहरण पूरी तस्वीर साफ करते हैं.
भारत में ‘बॉयकॉट चाइना’ का मतलब?
एक महीने पहले गलवान घाटी में चीन की तरफ से हुई हिंसा के बाद से भारत में चीन के खिलाफ माहौल बना हुआ है. जून में चीन के प्रति भारतीयों का मन जानने के लिए नेटवर्क18 समूह ने पोल करवाया, उसमें कम से कम 70% लोगों ने कहा कि वो चीनी सामान के बॉयकॉट के लिए तैयार हैं, भले ही उन्हें इसके बदले ज़्यादा कीमत चुकाना पड़े.ये भी पढ़ें :- जानिए क्या है ‘चैलेंज ट्रायल’, जिसकी पुरज़ोर वकालत कर रहे हैं नोबेल विजेता
News18 के पोल में मिले नतीजे.
इसी पोल में, 91% लोगों ने ये भी माना वो चीनी एप्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना न केवल खुद बंद करेंगे बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करेंगे. ये पोल 15 जून की हिंसा के बाद करवाया गया था. इससे पहले न्यूज़18 सेंटीमीटर नाम से एक और पोल किया गया था, जो 5 6 जून को प्रकाशित हुआ था, उसमें 91% लोगों ने बॉयकॉट चाइना का समर्थन करने की बात कही थी.
जानने की बात यह भी है कि इससे पहले भी कई बार भारत में बॉयकॉट चीन की लहर उठी है और कई बार चीन के खिलाफ प्रदर्शन होते रहे हैं. 2014 में जब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार बनी थी, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख ने कहा था कि ‘नई सरकार आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के लिए चीन के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाएगी.’
इसके बाद जब चीन ने 2016 में एनएसजी में भारत के लिए रास्ते बंद किए, यूएनएससी में भारत के लिए रोड़े अटकाए, पाकिस्तान का खुला समर्थन किया और उरी हमले में आतंकवाद का समर्थन किया, तब भारत में बॉयकॉट चीन की लहर दौड़ी थी. तब भारत में चीनी सामानों की खरीदारी में 40 फीसदी तक गिरावट दिखी थी.
News18 के पोल में मिले नतीजे.
आधे ब्रिटेन ने किया चीन का विरोध
जून 2020 में एक सर्वे में खुलासा हुआ कि 49% ब्रिटिश नागरिक ‘कुछ चीनी सामानों’ का बॉयकॉट करने के लिए तैयार थे और दो तिहाई का मानना था कि चीनी सामानों के आयात पर शुल्क बढ़ा दिया जाना चाहिए. ब्रिटेन ने चीन के खिलाफ यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि एक तो चीन कई देशों के साथ दादागिरी वाला बर्ताव कर रहा है और दूसरे ये कि झिनझियांग प्रांत में ‘बंधुआ मज़दूरी’ की प्रथा है इसलिए कपास के आयात पर बैन लगाने जैसे कदम भी उठाए गए.
अमेरिका में मेड इन चाइना के खिलाफ लहर
इसी साल मई महीने में वॉशिंग्टन में हुए एक सर्वे में कहा गया कि 40% लोगों ने मेड इन चाइना प्रोडक्ट के खिलाफ मन ज़ाहिर किया. अस्ल में, अमेरिका में यह लहर इसलिए देखी गई क्योंकि अमेरिकी नेताओं ने कोविड 19 को लेकर चीन को दोषी और कातिल ठहराया. हालांकि इससे पहले भी अमेरिका के साथ व्यापारिक युद्ध में उलझे रहे चीन के खिलाफ 2019 में भी लहर थी.
पिछले साल अमेरिका ने चीन की हुआवेई और ZTE को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताकर ब्लैकलिस्ट किया था. इसके बाद चीन की सरकारी कंपनी चाइना मोबाइल को और 2020 में चाइना टेलिकॉम को भी इसी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया.
News18 के पोल में मिले नतीजे.
तिब्बत रहा है चीन विरोधी
हमेशा से ही तिब्बत अपना विरोध दर्ज करवाता रहा है क्योंकि विस्तारवादी नीतियों के चलते चीन ने यहां जबरन अपना कब्ज़ा किया हुआ है. तिब्बत की आज़ादी के लिए 2014 में दलाई लामा के भाई प्रोफेसर थुप्टेन नोरबू ने बॉयकॉट चाइना अभियान चलाने के लिए तिब्बतियों से अपील की थी.
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चीन के खिलाफ खड़ा हो रहा है ऑस्ट्रेलिया
कोविड 19 के दौर में ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच व्यापारिक तनाव चल रहा है. इस बीच, एक सर्वे में कहा गया कि 88% ऑस्ट्रेलियाई चीनी आयात पर भरोसा करने के बजाय स्वदेशी उत्पादन के पक्ष में हैं. इससे पहले, 2019 में भी कुछ प्रमुख ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों ने झिनझियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन के समाचारों के बाद कपास का आयात चीन से बंद कर दिया था.
फिलीपीन्स और वियतनाम में भी रहा ये ट्रेंड
साल 2012 में जब चीन ने फिलीपीन्स के अधिकार वाले द्वीप को हड़पने की चाल चली थी, तब देश भर में चीनी सामानों के बॉयकॉट को लेकर कई प्रदर्शन हुए थे और अभियान भी. इसी तरह, दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी अप्रोच, दादागिरी वाले रवैये और खराब क्वालिटी को कारण बताते हुए 2011-12 में वियतनाम में चीनी सामानों का बहिष्कार किया गया था. इसके बाद 2014 में सागर में विवाद के चलते वियतनाम में चीन के खिलाफ फिर ऐसे कदम उठाए गए थे.