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Home समाचार

एजेंटों को आत्मनिर्भर बनाने और कंपनी का मुनाफा पीएम फंड में लगाने की बातें कर जीतते रहे लोगों का भरोसा

संजयग्राम by संजयग्राम
18/07/2020
in समाचार
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जालंधर17 घंटे पहले

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गुरमिंदर सिंह

  • भास्कर ने मामले से जुड़े एजेंटों, पीड़ित लोगों से बात की तो हुए खुलासे
  • 2 एजेंटों ने ही कपूरथला, जालंधर, टांडा, मुकेरियां, पठानकोट, लुधियाना और खन्ना के 8500 लोगों को जोड़ा था कंपनी के साथ

पीपीआर मॉल की तीसरी मंजिल पर ओएलएस व्हिज प्राइवेट लिमिटेड के पार्टनर रंजीत सिंह, उसके साले गगनदीप सिंह और गुरमिंदर सिंह ने 4 साल के अंदर इतना बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया था कि बड़ी गिनती में लोगों ने उनकी कंपनी में पैसा लगाना शुरू कर दिया। लग्जरी दफ्तर में बैठे 3 सफेदपोश ठग एजेंटों के जरिये पब्लिक का पैसा लूटते रहे।

जांच में ठगी की रकम 25 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है, जबकि फिल्म अभी बाकी है। शुक्रवार को करीब 4 करोड़ की ठगी की शिकायत फिर थाने में आई है। पब्लिक का पैसा लूटने वाला रंजीत एजेंट से मीटिंग करता था। हर एजेंट को आत्मनिर्भर बनने की कहानी सुनाते हुए कहता था कि मैं भी डेढ़ लाख की नौकरी छोड़कर खुद आत्मनिर्भर बना हूं। साले और रिश्तेदार गुरमिंदर को बिजनेस में लगाया है।

कंपनी अगर पैसा कमाती है तो मैं प्रधानमंत्री फंड में दान करता हूं ताकि समाज की भलाई पर खर्च हो सके। रंजीत और उसके दोनों साथी कभी सीधे किसी ग्राहक से नहीं मिलते थे। केवल एजेंटों से ही उनकी मीटिंग होती थी। भास्कर ने मामले से जुड़े एजेंट और पीड़ित लोगों से उनके खून पसीने की कमाई लुट जाने के बाद उनसे बात की तो यह कहानी निकल कर आई कि यह कंपनी 2016 में बाजार में आई थी। पीपीआर मॉल में आलीशान दफ्तर बनाया गया था। दफ्तर में बैठे-बैठे एजेंट के जरिये माउथ पब्लिसिटी से ही इतना बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया कि लोग आंख मूंद कर पैसे देने लगे।

एजेंट बोला- 10 हजार रुपए मिले तो 5500 लोगों के पैसे कंपनी में लगवा दिए

एजेंट सुखविंदर सिंह ने कहा कि वह बस अड्डे के पास कैफे चलाते हैं। उसके फ्रेंड सर्किल से जुड़े योगराज और शीला सिंह उसके पास आए। दोस्ती के नाते एक गुमनाम कंपनी में एक हजार रुपए महीना कमेटी डालने का ऑफर दिया। कुल 13 हजार रुपए दिए तो साल बाद एलईडी दी गई। शीला ने उसे ऑफर दी कि वह उनके साथ काम करे। उसने दोस्त हरजिंदर सिंह को उनसे मिलवा दिया। कंपनी ने शीला और योगराज को उसके पास भेजा और दस हजार रुपए दिए कि यह उसकी मेहनत का फल है।

बोले- तुमने हरजिंदर को मिलवाया तो कंपनी किसी का हक नहीं रखती। इसके बाद उसने ने कपूरथला, जालंधर, टांडा, मुकेरियां, पठानकोट, लुधियाना और खन्ना में अपने लिंक से जुड़े करीब 5500 लोगों के पैसे कंपनी में लगवा दिए। शीला के बाद उसकी सीधी मुलाकात रंजीत से हुई। सुखविंदर ने कहा कि दिसंबर 2019 तक लोगों को पैसे देने थे। रंजीत से बात की तो मार्च में सबका पैसे देने की बात की। 13 जुलाई को रात आठ बजे रंजीत से अंतिम बात हुई थी। अब उसके भी 7.50 लाख रुपए ठगे गए हैं। ऐसी ही एजेंट 28 साल की रमा रानी है। जिसके जरिये करीब 3 हजार लोगों ने कंपनी में 4 करोड़ रुपए लगाए थे।

किस्त पांच हजार रुपए पर पहुंची तो फरार हो गई कंपनी

कंपनी ने पहले एक-एक हजार रुपए से काम शुरू किया। 11 महीने पब्लिक से किस्त ली और उनकी जरूरत के हिसाब से चीज उन्हें खरीद कर दी गई। एजेंट को कमीशन दी तो वे जल्द अमीर बनने के चक्कर में रात-दिन कंपनी के लिए ग्राहक लाने लगे। 2 हजार और 3 हजार रुपए की किस्त वाली कमेटी की पेमेंट ठग कंपनी ने करनी शुरू कर दी। इसके बाद लोगों ने पांच हजार रुपए प्रतिमाह इनवेस्टमेंट शुरू कर दी। कंपनी ने इतना विश्वास जीत लिया था कि दी गई रकम की रसीद भी नहीं दी जाती थी। बस वेबसाइट से ग्राहक को मैसेज ही आता था कि पैसे जमा हो गए। कंपनी के पास अब बोरिया-बिस्तर गोल करने का मौका था, क्योंकि लोग मोटा पैसा लगा चुके थे। इस बीच लॉकडाउन शुरू हो गया और कंपनी दौड़ गई।

भरोसा जीतने के लिए कंपनी का ड्रामा

एजेंट कहते हैं कि इसी साल से पेमेंट के भुगतान को लेकर कंपनी में विवाद शुरू हुआ था। रंजीत और उसके पार्टनर इतने शातिर थे कि जब कोई एजेंट या ग्राहक अपने पैसे मांगने जाता तो दफ्तर में पैसे से एेसे लोग उन्हें मिलवा दिए जाते थे कि उन्हें पेमेंट मिल गई है। इसलिए रंजीत की बात पर लोग भरोसा कर लेते थे कि चलो उनके पैसे भी मिल जाएंगे। अब लोग समझने लगे हैं कि केवल गच्चा देने के लिए एक साजिश के तहत ड्रामा किया जाता था ताकि लोग विरोध न करें।

एजेंटों के बीच डाल दी जाती थी दरार

कंंपनी पॉलिसी बताकर एजेंटों को कभी एक-दूसरे के करीब नहीं आने देती थी। हर एजेंट को मीठी-मीठी बातें करके यह यकीन दिलवाया जाता था कि दूसरा एजेंट उससे ईर्ष्या रखता है। जब कंपनी ठगी करके गायब हो चुकी है तो अब थाने के बाहर इकट्‌ठे हुए एजेंट अपना दर्द बयां कर रहे हैं। उन्हें अब समझ आया कि एजेंटों को उलझा कर सफेदपोश ठग अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं।

एलओसी जारी करने के लिए इनपुट जुटा रही पुलिस

13 जुलाई को ठग कंपनी की पोल खुलनी शुरू हो गई थी। उसी रात दफ्तर में हंगामा हुआ। जबकि 14 जुलाई की रात रंजीत सिंह का मोबाइल फोन बंद आना शुरू हो गया था। अब खास यह भी है कि कोरोना के कारण सफेदपोश ठग देश छोड़कर तो नहीं भाग सकते, मगर उनकी एलओसी जारी करवाने के लिए पुलिस ने इनपुट जुटा रही है ताकि एयरपोर्ट अथॉरिटी को सूचना दी जा सके। डीसीपी गुरमीत सिंह कहते हैं कि एक साजिश के तहत पब्लिक का पैसा ठगा गया है। एसीपी हरिंदर सिंह गिल और एसएचओ कमलजीत सिंह की टीम आरोपियों की तलाश में जुटी है।

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